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मानसरोवर--मुंशी प्रेमचंद जी


धिक्कार-2 मुंशी प्रेम चंद

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शाम को गोकुल ने अपनी माँ से कहा- अम्माँ, इंद्रनाथ के घर आज कोई उत्सव है। उसकी माता अकेली घबड़ा रही थी कि कैसे सब काम होगा, मैंने कहा, मैं मानी को कल भेज दूँगा। तुम्हा‍री आज्ञा हो, तो मानी का पहुँचा दूँ। कल-परसों तक चली आयेगी।
मानी उसी वक्त वहाँ आ गयी, गोकुल ने उसकी ओर कनखियों से ताका। मानी लज्जा‍ से गड़ गयी । भागने का रास्ता न मिला।
माँ ने कहा- मुझसे क्या पूछते हो, वह जाय, तो ले जाओ।
गोकुल ने मानी से कहा- कपड़े पहनकर तैयार हो जाओ, तुम्हें इंद्रनाथ के घर चलना है।
मानी ने आपत्ति की- मेरा जी अच्छा नहीं है, मैं न जाऊँगी।
गोकुल की माँ ने कहा- चली क्यों नहीं जाती, क्यार वहाँ कोई पहाड़ खोदना है?
मानी एक सफेद साड़ी पहनकर ताँगे पर बैठी, तो उसका हृदय काँप रहा था और बार-बार आँखों में आँसू भर आते थे। उसका हृदय बैठा जाता था, मानों नदी में डुबने जा रही हो।
ताँगा कुछ दूर निकल गया तो उसने गोकुल से कहा- भैया, मेरा जी न जाने कैसा हो रहा है। घर चलो, तुम्हारे पैर पड़ती हूँ।
गोकुल ने कहा- तू पागल है। वहाँ सब लोग तेरी राह देख रहे हैं और तू कहती है लौट चलो।
मानी- मेरा मन कहता है, कोई अनिष्ट होने वाला है।
गोकुल- और मेरा मन कहता है तू रानी बनने जा रही है।
मानी- दस-पाँच दिन ठहर क्यों नहीं जाते? कह देना, मानी बीमार है।
गोकुल- पागलों की-सी बातें न करो।
मानी- लोग कितना हँसेंगे।
गोकुल- मैं शुभ कार्य में किसी की हँसी की परवाह नहीं करता।
मानी- अम्माँ तुम्हें घर में घुसने न देंगी। मेरे कारण तुम्हें भी झिड़कियाँ मिलेंगी।
गोकुल- इसकी कोई परवाह नहीं है। उनकी तो यह आदत ही है।
ताँगा पहुँच गया। इंद्रनाथ की माता विचारशील महिला थीं। उन्होंने आकर वधू को उतारा और भीतर ले गयीं।

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